एक बूढी लाचार बदनसीब माँ
दोस्तों एक कहानी याद आ रही है , सोचा आपके साथ शेयर करूँ, कहानी एक बूढी लाचार व् बदनसीब माँ की ,, अगर कहानी पसंद आये तो लाइक ब्लॉग व् चैनल को सब्सक्राइब कर दीजियेगा , आपका प्यार मुझे कुछ नया लाने के लिए प्रेरित करता रहेगा ,
आईये
शुरू करते हैं,
रमा एक बूढी औरत थी । अपने बेटे रवि व् उसकी पत्नी व् बेटे के साथ अपने दिन गुजार रही थी , उसका बेटा रवि किसी अच्छी कम्पनी में काम किया करता था , रमा के पति का देहांत रवि के बचपन में ही हो चुका था। सो रमा ने किसी तरह समाज से लड़ झगड़ कर लोगों के घर झाड़ू कटका कर खुद न जाने कितनी रात भूखी रहकर रवि को पाला पोषा था , अपना पेट काटकर उसे खिलाया और हर दुःख बीमारी में उसकी माँ और बाप दोनों की तरह देखभाल की ,
समय का पहिया तेजी से चला रमा अब बूढी हो चुकी थी। जवानी रवि की जिम्मेदारियों में समय इस तरह बीता की उम्र का एक पड़ाव कब बीता पता ही नहीं चला ,
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आज भी रमा काम किया करती थी पहले वो दूसरों के घरों में करती थी आज अपने बहु बेटे के लिए करती थी परन्तु वो बहुत खुश थी कि वो अपने बेटे के लिए कर रही है , समय बीतता गया , रवि अपने निजी जीवन व् खुद की जिम्मेदारियों में इस कदर व्यस्त हो गया की माँ को बिलकुल भूल गया , रमा भी कभी कुछ नहीं कहती सोचती कि बहु और रवि के बीच कोई झगड़ा न हो जाये ,
सर्दियां
शुरू हो चुकी थीं।
रमा अपने कमरे में एक पुरानी से
कम्बल में सोई रहती , जो की बहुत
पुरानी होने के कारण हवा
तक को नहीं रोक
पाती थी , कई बार रवि
को बताने की हिम्मत की और
बताया भी रवि हमेशा
टाल देता था कहता माँ तुम्हारे
पोते के स्कूल की
फीस व् घर की किश्त जमा करनी है , इस बार थोड़ा एडजस्ट कर लीजिये अगली बार जरूर ला दूंगा , ये बात रवि इस बार तीसरी
बार बोल रहा था , रमा कुछ नहीं बोल पायी। इस बार की ठण्ड मानो जान निकल लेने वाली थी
, इतनी कड़ाके के ठण्ड पिछले कई सालों में नहीं पड़ी जैसे की इस बार पड़ रही थी। रमा अपने कमरे में लेटी उस जालीदार पुराने कम्बल से खुद को छिपाने व् ठण्ड से बचाने की नाकाम कोशिश करती रही। लेकिन नियति के आगे हार गयी इस बार की ठण्ड रमा
को निगल गयी
रमा आज ठण्ड से अकड़ी हुई लाश बन चुकी थी, आज रवि को माँ के प्रति जिम्मेदारियों का एहसास या यूँ मानो समाज को सबसे अच्छा बनकर दिखने का ढोंग ,आज रमा की अर्थी में नयी शाल व् बड़े ही धूम धाम से अंतिम यात्रा की तैयारी की सभी लोग रवि को अपना आदर्श मानते बोलते काश रवि जैसा बेटा उनको मिले ,
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हकीकत तो रमा से पूछिए जिसे एक कम्बल की कमी से ठण्ड की लड़ाई में अपनी जान गवानी पड़ी।
दोस्तों
हमारे माँ बाप हमारी जिम्मेदरी हैं। आज
अगर वो बूढ़े हो
गए हैं तो हमे उनका
ख्याल अपने बच्चों की तरह रखिये
बच्चे तो अपनी जरूरतें फिर भी आपसे बोल
देते हैं। परन्तु
माँ बाप आपसे कुछ चाह कर भी बोल
नहीं पाते। कहीं
आपको बुरा न लग जाये
या बहु आपसे झगड़ा न करने लगे।
आपके माँ बाप भी आपको उतना
ही प्यार करते हैं जितना आप आपने बच्चों
से।
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