दीपक -🙏 एक मजबूर माँ बेटे की कहानी

                                              सच्ची मगर अनकही कहानी

 

ये कहानी है दीपक की, जो की आज  लगभग आज से ३०-३२ साल पहले उत्तराखंड के एक छोटे से गाँव से अपने माता पिता व् एक भाई व् दो बहनो के साथ एक कसबे में रहने आया।  पिता कम पढ़े लिखे थे व् माँ अनपढ़ थी।  फिर उसके माता पिता अपने चारो बच्चो को पढ़ा लिखा कर काबिल इंसान बनाना चाहते थे। एक कमरा किराये पर लेकर दीपक के पिता उस कसबे में अपना जीवन यापन करने लगे।  दीपक के पिता दिनभर मजदूरी किया करते और माँ घर पर बच्चों का ख्याल रखती।

   दीपक की उम्र उस वक्त लगभग वर्ष की रही होगी।  दीपक की पढ़ने में रूचि देखकर उसके माता पिता का  मन उसे पढाने का  करता परन्तु अपनी आर्थिक स्थिती व् रोज की दिहाड़ी मजदूर से बमुश्किल घर में दो वक्त की रोटी की व्यवस्था हो पाती थी ऊपर से दीपक के पिता को शराब की लत लगने के कारण दीपक की रही सही इच्छा भी मर सी जाती

 वो दौर भरोसे विश्वाश व् एकदूसरे की मदद करने वाले लोगो से भरा हुआ था।

मेरी इस कहानी की वीडियो देखने के लिए यहाँ क्लिक करें 

वहीँ जहाँ दीपक रहा करता था उसके पड़ोस में एक बहुत ही सुन्दर मंदिर था।  उस मंदिर की सुंदरता का व्याख्यान करपाना भी मुश्किल है। उस मंदिर के पंडित जी अपने एकमात्र बेटे के साथ रहा करते व् मंदिर का सारा जिम्मा उनके ऊपर था।  उनका बेटा उस वक्त आठवीं कक्षा में पढ़ा करता था

दीपक भी अक्सर उस मंदिर में जाया करता उस मंदिर में जाने का एक कारण और भी था टेलीविजन ,उस पुरे क्षेत्र में टेलीविजन या तो मंदिर में था या कुछ उस वक्त के अमीर सरदारों के पास। किसी घर में टीवी होना भी अपने आप में रईसी थी। दीपक भी अपने गरीब दोस्तों के साथ उस मंदिर में टीवी देखने जाया करता था जो की पंडितजी के कमरे में बने मचान पर रखा होता , दीपक  अपने दोस्तों के साथ नीचे बैठ कर नाटक, नौटंकी व् फिल्म देखा करता था जमाना B&W  टीवी का था। एक दिन दीपक शाम के वक्त मंदिर जाता है और देखता है की पंडित जी कुछ सरदारों के बच्चों को पढ़ा रहे हैं।  उसके मन में भी पढ़ाई के प्रति रूचि थी तो वो भी रोज  उस वक्त वहां आकर दूर से बच्चों को पंडित जी से टूशन पढ़ते देखता। पर घर की परिस्थितियों के चलते व् इस टूशन की फीस दे पाने की वजह ,अपनी इच्छा को  दीपक किसी से बोल नहीं पाता था। एक दिन हिम्मत करके उसने अपनी बात पंडित जी से कही कि मैं भी पढ़ना चाहता हूँ परन्तु मेरे पास आपको देने के लिए फीस नहीं है

  दीपक की इच्छा सुनकर पडित जी को अच्छा तो लगा परन्तु वो बोले बेटा दीपक एक बच्चे को तो मैं नहीं पढ़ाऊंगा और तुम्हे इन बच्चो के साथ नहीं पढ़ा सकता एक काम करो अगर तुम्हारे साथ कुछ और बच्चे हों तो तुम सभी इसवक्त रोज पढ़ने सकते हो।  मैं तुम लोगों से फीस तो नहीं लूँगा लेकिन पढाई के बाद रोज तुम सभी को मेरे साथ मंदिर की साफसफाई व् बगीचे व् फूलों को पानी देना पड़ेगा।  दीपक ने ख़ुशी ख़ुशी ये शर्त मान ली व् अपने सभी मित्रों को पढ़ने आने के लिए तैयार कर लिया , दीपक पढ़ने में होशियार था जल्द ही वो पंडित का फेवरेट हो गया।  टीवी देखते वक्त भी सभी बच्चे नीचे बैठते लेकिन दीपक ही  एक मात्र था जो तखत पर बैठता था। पिताजी की भी अब ठीक ठाक आमदनी हो जाया करती सो दीपक का नाम पास के ही एक स्कूल में लिखा दिया।  स्कूल प्राइवेट था ३० रुपये मासिक फीस निकलना भी दीपक के माता पिता के लिए मुश्किल हो जाया करता।

  समय बीतता गया दीपक स्कूल में भी सभी टीचरों का चहेता बन गया। लेकिन दीपक मन ही मन दुखी रहने लगा।  उसके मन में हजार सवाल पनप रहे थे यूँ कहिये दीपक अपने आप को स्कूल के इस माहोल या सांचे में खुद को नहीं ढाल पा रहा था। घर की गरीबी , माता पिता का अक्सर झगड़ा, भूख प्यास की मार , पिता की शराब की लत और स्कूल में होने वाले बच्चों के दुर्व्यवहार , ऊंच नीच जाती सूचक शब्दों का बोलना गरीबी का मजाक उड़ाना ये सभी बातें दीपक को मन ही मन खा रही थीं। जिसे वो चाह कर भी किसी से साझा नहीं कर पाता। वो इस सब बातों में उलझता चला गया और धीरे धीरे पढाई में रूचि होते हुये भी कमजोर हो गया। वो अपने सवालों को नहीं पूछ पता , यूँ मनो खुद के सवालों के जवाब खुद बनाने लगा और एक अनजाने भय को अपने भीतर पालने लगा।

मेरी इस कहानी की वीडियो देखने के लिए यहाँ क्लिक करें 

परिवार में दीपक के अलावा भी बच्चे और थे। मातापिता गुजर बड़ी मुश्किल से कर पाते, बच्चों को शहर में रखने की दीपक की माँ की जिद ने  उसके पिता को वहां सर ढकने की जगह खरीदने के लिए कहा १० हजार  बहुत बड़ी रकम थी उस वक्त फिर भी कर्ज लेकर पिता ने वो जमीन खरीदी।  झोपड़ी बनायीं  सभी हसी ख़ुशी रहने लगे। सिर के ऊपर झोपड़ी तो बन गयी।  लेकिन आंधी में सबकुछ बिखर जाता। यूँ कहो गर्मी में गर्मी व् बरसात में बारिस तक को घास फूस की वो झोपडी नहीं रोक पाती  किसी तरह वो पूरा परिवार जीवन बिता रहा था . कर्जदारों के आये दिन परेशान करने और घर की जरूरतें पूरी हो पाने के कारन दीपक की माँ ने भी घरो में जाकर झाड़ू बर्तन का काम पकड़ लिया। जिस से दीपक मानसिक तौर पर और दुखी रहने लगा। अब दीपक ने  इण्टर कॉलेज में कक्षा में दाखिला खुद से करवाया वहां वो अधिक तनाव में रहने लगा सारे बच्चे किसी किसी अच्छे अमीर  परिवार से ताल्लुक रखते  और दीपक  गरीब होने के कारण  खुद हो हीन व् तुच्छ समझने लगा वो अब किसी से खुलकर भी नहीं बोल पता, पुरे ७० बच्चों में उसके सिर्फ दोस्त थे वो भी पिछले साल के फेलियर और लेकिन मानसिक परेशानियों के चलते  उस वर्ष  दीपक फेल  हो गया परन्तु उसके दोनों दोस्त पास हो गए दीपक और तनाव में जाता चला गया। इण्टर कॉलेज से निकाल दिया गया और उसने  एक जूनीयर हाई स्कूल में दाखिला ले लिया। सरकारी स्कूल होने व गरीब बच्चे होने के कारण उसके कुछ दोस्त बने पिछले कक्षा में फेल होने का फायदा उसे यहाँ मिला वो नए बच्चों में होशियार बन गया और अगले सालों तक अपनी पकड़ कक्षा में प्रथम बनायीं राखी  तीन साल बाद वापस से दीपक  कालेज में दोबारा गया इस बार वो थोड़ा होशियार हो चुका था। सरकारी स्कूल के गरीब दोस्तों  के कारण वो भेदभाव वाली हीन भावना कम हो चुकी थी। इस बार दीपक इस कालेज में अपनी कक्षा में प्रथम श्रेणी में पास हुआ ये क्रम आगे भी चलता रहा। 

दीपक देशभक्ति से बहुत प्रेरित था। वो फ़ौज में जाना चाहता था। परन्तु उसके माता पिता घर में बड़ा होने व् कुछ हो जाने के डर से हमेसा रोक देते।  दीपक १० वीं  करने के बाद गर्मियों की छुट्टियों में एक नजदीकी सीरींज फैक्ट्री में १२ घंटे काम करने लगा ताकि वो अपनी आगे की पढाई का खर्च व् घर में अपने मातापिता की कुछ मदद कर पाए।  जिंदगी में पहली बार दीपक काम पर गया १२ घंटे मशीन पर खड़े होकर नीडल्स को पैकजिंग करना होता था बहुत बार नीडल्स बिना कैप की होती तो अक्सर हाथ में घुस जाया करती उस जख्म पर थिनर लगाकर फिर से काम में जुट जाता.

किसी तरह उसने गर्मियों की छुट्टिओं में साढ़े आठ हजार रुपये कमाए वो उसकी जिंदगी के पहले पैसे उसे मजदूरी की तरफ धकेलते चले गए।  कभी पल्लेदारी कभी राजमिस्त्रियों के साथ मजदूरी , कभी सीमेंट की गाड़ियों में लदान का काम ,जो भी काम मिलता वो कर लेता।  उसकी माँ उसे पढ़ालिखा बनाना चाहती थी और वो मजदूरी करके अपनी माँ का घरों में काम करना छुड़ाना, दोनों अपने जिद पर अड़े रहे। अंत में माँ के कहने पर वो पढ़ने को तैयार हुआ। आगे बहुत सी परेशानियाँ  बहुत सारे उतार चढ़ाव आने को तैयार थे। दीपक एक लौ बनकर जिंदगी की हर परेशानी रूपी  आँधियों का सामना करने को तैयार हो रहा था। 

  कहानियां जिंदगी का आइना होती हैं।  बचपन इंसान का भविष्य तय करती हैं कि क्या करना है। मजबूरी ही मजबूती बनती है। बूँद बूँद से सागर और ठोकर खा खा कर इंसान बनता है।

मेरी इस कहानी की वीडियो देखने के लिए यहाँ क्लिक करें   

ये कहानी आपको पसंद आयी हो तो ब्लॉग  व् चैनल को सब्सक्राइब करके आपने आशीर्वाद दीजियेगा

Comments

Popular posts from this blog

हिन्दुस्तान का अस्तित्व

१० रुपये का नोट 😭😭😱😭😭

पोस्को कानून